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अरविन्द सक्सेना, 
   
   पूर्व छात्र       

​मैं सन् 1983 से 1986 तक जूनियर कक्षा में सरस्वती विद्या मन्दिर का छात्र रहा। उस समय विद्यालय में तीन कक्ष जो छप्परनुमा झोपड़ी से पटे हुए थे। लेकिन शिक्षा एवं संस्कार का स्तर बहुत ऊंचा था। आचार्य बन्धु परिवार की तरह प्रेम और सौहार्द से पढाते थे। आचार्य जी हमारे परिवार के दुख- सुख की भी जानकारी रखते थे। कम वेतन में भी सेवा का भाव झलकता था। कमजोर छात्रों के लिए निशुल्क शून्य वेला भी चलती थी। उस समय कुछ याद है कि श्री सुरेश जी नागर प्रधानाचार्य, श्री ओमप्रकाश शर्मा, श्री अरविन्द द्विवेदी श्री सतीश जी आचार्य जी का पढाने का ढंग बहुत अच्छा लगा। पढाई रोचक करके शिशु भारती में अन्त्याक्षरी माध्यम से अंग्रेजी शब्दों को याद करने की प्रेरणा मिलती थी। बहुत से शब्द कोष का भण्डार आज मेरे अन्दर अन्त्याक्षरी के माध्यम से भरा हुआ है। संस्कृति ज्ञान परीक्षा सामान्य ज्ञान का भण्डार है। जब में सरकारी नौकरी के लिए परीक्षा देने गया तो 70 प्रतिशत प्रश्न मुझे संस्कृति ज्ञान परीक्षा से मिले और मेने बिना कम्पटीशन की तैयारी किये इस परीक्षा को उत्तीर्ण किया और आज मैं सहायक खण्ड विकास अधिकारी के पद कार्यरत हूँ। आज कुछ भी हूॅ  वह सब में सरस्वती शिशु मन्दिर/विद्या मन्दिर में अध्ययन के कारण से हूॅ। यहाँ शिक्षा के साथ-साथ संस्कार भी दिये जाते हैं। नेतृत्व करने की कला छात्र संसद द्वारा मिलती है। इसी को ध्यान में रखकर के मैने अपने बच्चों को शिक्षा का माध्यम विद्या भारती को ही चुना। आज मेरे बच्चे अच्छे संस्कारबान हैं। आज्ञा का पालन करते हैं। मुझे गौरव की अनुभूति होती है। कि मैं जिस विद्यालय की छत्रछाया में रहा वह दिनोंदिन प्रगति के पथ पर अग्रसर है। 

सेवा बस्ती में विद्या मन्दिर का योगदान:
सरस्वती विद्या मन्दिर इण्टर कालेज सिकन्दरा राव के द्वारा 04 सेवा बस्तियों में 05 संस्कार केन्द्र संचालित हो रहे। हैं। जिसमें 155 भैया बहिन संस्कारित हो रहे हेै। सेवा क्षेत्र की शिक्षा हेतु श्री नबाब सिंह आचार्य की नियुक्ति इसी कार्य हेतु की गयी है। समाज में निरन्तर सम्पर्क रहता है। श्री कृष्णजन्माष्टमी के अवसर पर संस्कार केन्द्र के भैया/बहिनों की राधाकृष्ण स्वरुप प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। जिसमें 25 स्वरुप राधाकृष्ण के बनकर आये।

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