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श्रीनिवास यादव, 
   
   संस्थापक आचार्य       

       सन् 1980 की बात है। हाथरस जनपद नहीं बना था। सिकन्दराराव तहसील अलीगढ़ जनपद की तहसील थी। मा॰ रामलाल जी हरिगढ़) अलीगढ़ जनपदके जिला प्रचारक थे। श्री रामदत्त जी सिकन्दरा राव तहसील के तहसील प्रचारक थे। साहित्य समिति भवन में जहाँ वर्तमान मेें सरस्वती शिशु मन्दिर का विशाल का भवन बना हुआ है। तथा वर्तमान में संचालित था। आगे कक्षाओं की महती आवश्कता संघ परिवार एवं नगर के प्रबुद्धजनों को कचोट रही थी।

जुलाई सन् 1980 के अन्तिम सप्ताह में संघ की बैठक थी। बैठक के बाद मा॰ रामलाल जी ने श्री सुरेशचन्द्र नागर, श्री ओमप्रकाश जी तथा मुझे अलग कक्ष में बुलाया। मा॰ रामलाल जी ने कहा कि क्यों न अभी से षष्ठम् कक्षा संचालित कर दी जाय। नागर जी ने कहा कि बच्चे जहाँ-तहाँ प्रवेश ले चुके हैं। अब इस सत्र में तो मुश्किल होगा। जिला प्रचारक जी बोले कि कार्यकर्ता तो विषम परिस्थिति में हीकार्य करता है। दृढ़ निश्चय से दुश्कर कार्य भी आसान हो जाता है। उन्होने दिवाकर जी की पंक्तियां दुहराई-है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में।मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है।।मा॰ रामलाल जी की प्रेरणा से अगस्त सन् 1980 में सरस्वती विद्या मन्दिर जूनियर हाईस्कूल का शुभारम्भ करने का दृढ़ निश्चय किया गया। लेकिन स्थानान्तरण आगे आ रहा था। अतः नगर के के सेठ स्व॰ श्री बैकुण्ठनाथ जी ने दो कमरों की नींव हेतु ईटों की व्यवस्था की। मैं बैलगाड़ी से छप्पर के लिए छप्पर का सामान (पतेल) लेने नदरई (कासगंज) गया। पतेल (पूरा) लेकर लौटते समय बारिश आने के कारण रात गयी। तो रास्ते में भीगते हुए पथरेकी गाँव में रात काटी। एक बैलगाड़ी सामान से दो झोपड़ीनुमा छप्पर तैयार हो गये। इस प्रकार छात्रों के बैठने की व्यवस्था हुई। श्री ओमप्रकाश शर्मा आचार्य जी मात्र 14 छात्रों के साथ श्रीगणेश कर पढाने लगे। श्री नागर जी, श्री रमेश मेहता तथा मैने नगर में सघन सम्पर्क शुरु कर दिया।

योजनाबद्ध तरीके से विद्यालय में हम तीनों ने शिक्षण कार्य शुरु कर दिया लक्ष्य केवल सम्पर्क करने का था। हम तीनो ने अथक प्रयास व सम्पर्क कर कक्षा षष्ठ्, सप्तम्, अष्टम् में एक साथ 80 बच्चों का प्रवेश करा दिया। इस प्रकार जूनियर कक्षाओं की शुरुआत हुई। जिसमें प्रथम सत्र में संख्या लगभग 95 थी। इसमें कड़ी में प्रधानाचार्य श्री सुरेशचन्द्र नागर, आचार्य - श्री  ओमप्रकाश जी, श्री श्रीनिवास यादव जी, श्री रमेश मेहता थे।इस प्रकार विषम परिस्थितिओं में विद्यालय की शुरुआत कर छप्पर के नीचे से आज विशाल भवने के साथ इण्टरमीडिएट की मान्यता सहित सरस्वती विद्या मन्दिर इण्टर काॅलिज सिकन्दरा राव के रुप में एक विशाल वट वृक्ष के रुप में परिलक्षित हो रहा है।

आज एक अथक प्रयास व दृढ संकल्प सिकन्दा राव में शिक्षा के क्षेत्र में ख्याति प्राप्त कर रहा है। तथा छात्रों का सर्वागीण विकास कर रहा है।’यद्यपि नींव के पत्थर दिखाई नहीं देते,लेकिन दिव्य-भव्य-गगनचुम्बी भवन का आधार होते हैं।’

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